विक्रमोत्सव के अंतर्गत आज राजधानी दिल्ली में हुआ 'विक्रमादित्य महानाट्य' का महामंचन

उज्जैन: 2000 के दशक की शुरुआत की एक अनूठी सांस्कृतिक पहल की शुरुआत उज्जैन की पावन धरती पर "सम्राट विक्रमादित्य महामंचन" के रूप में हुई। यह महानाटक सिर्फ एक ऐतिहासिक चरित्र का स्मरण नहीं था, बल्कि एक ऐसे युग की पुनर्स्थापना थी जिसे भारतीय संस्कृति, न्याय और नैतिकता का प्रतीक माना जाता है। इस नाटक की सबसे दिलचस्प बात यह रही कि सम्राट महेंद्रादित्य (विक्रमादित्य के पिता) की भूमिका को डॉ. मोहन यादव ने खुद जीवंत कर दिया।
नाटक के समय किसी ने सोचा भी नहीं था कि मंच पर आया यह युवक भविष्य में मध्य प्रदेश के विक्रमादित्य की तरह एक नेता, सांस्कृतिक संरक्षक और जन प्रतिनिधि के रूप में पहचाना जाएगा। डॉ. यादव के संस्कृति और साहित्य के प्रति इसी प्रेम ने उन्हें सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा दिया। सत्ता में आने के बाद भी उनका रुझान सिर्फ नाटक तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने नाटक को सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का माध्यम बना दिया।
विक्रमदर्शिता प्राधिकरण से हुई शुरुआत
मुख्यमंत्री डॉ. यादव जब उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने तो उन्होंने विकास को केवल अधोसंरचना निर्माण तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य के दृष्टिकोण से उज्जैन नगर को इतिहास, आस्था और आधुनिकता के संगम नगर के रूप में देखा। उनकी पहल पर नगर में चार दिशाओं में भव्य प्रवेश द्वार बनाए गए, जो चार युगों के प्रतीक हैं। यह कार्य न केवल स्थापत्य की दृष्टि से अभिनव था, बल्कि सांस्कृतिक चेतना को भी जागृत करता था। उज्जैन को देश का पहला ऐसा नगर बनने का गौरव प्राप्त हुआ, जिसमें संस्कृति का स्वागत दिशा-प्रेरित प्रवेश द्वारों से किया गया।
विक्रम विश्वविद्यालय को नई पहचान
मुख्यमंत्री डॉ. यादव का अगला महत्वपूर्ण कार्य सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर स्थापित विक्रम विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना था। उन्होंने न केवल विश्वविद्यालय में शोध और शैक्षणिक गुणवत्ता को बढ़ावा देने की योजना बनाई, बल्कि सम्राट विक्रमादित्य के साहित्य, न्याय दर्शन और सांस्कृतिक मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की दिशा में विशेष प्रयास भी शुरू किए।
लाल किले से राष्ट्रव्यापी मंच तक
अब जबकि डॉ. यादव सत्ता और संस्कृति के बीच सेतु बन चुके हैं, तो उन्होंने अपने पुराने सांस्कृतिक अभियान को उत्थान के नए आयाम पर ले जाने का संकल्प लिया है। उनके नेतृत्व में टीम अब पूरे देश में सम्राट विक्रमादित्य की भव्य नाट्य प्रस्तुति के लिए तैयार है। सम्राट विक्रमादित्य के जीवन और दर्शन पर आधारित यह नाट्य लाल किले जैसे ऐतिहासिक स्थल पर मंचित होकर राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक विरासत को पुनर्स्थापित करेगा और सांस्कृतिक उत्थान के नए आयाम स्थापित करेगा।
"सम्राट विक्रमादित्य" सिर्फ इतिहास के पात्र नहीं हैं, वे भारतीय मानस के आदर्श पुरुष हैं। डॉ. मोहन यादव ने उन्हें सुशासन के प्रेरणास्रोत में तब्दील कर दिया है। उनका अभियान सिर्फ उज्जैन या मध्य प्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे भारत में सांस्कृतिक चेतना की लौ जलाने वाला है। जब लाल किले की प्राचीर पर विक्रमादित्य की गाथा गूंजेगी, तो यह सिर्फ नाट्य प्रस्तुति नहीं होगी। यह भारतीय अस्मिता का उत्सव होगा।