इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि संतान के लिए शादी किए बिना भी स्त्री-पुरुष साथ रहने के हकदार हैं. कोर्ट ने एक अंतरधार्मिक लिव-इन मामले में इस कपल को पुलिस सुरक्षा देने का निर्देश भी दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने संभल के लिव-इन दंपती की नाबालिग बेटी की ओर से दायर याचिका पर दिया है. अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए यह निर्णय सुनाया.

याची के अधिवक्ता सैय्यद काशिफ अब्बास ने बताया कि बच्ची की मां के पहले पति की एक बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी. इसके बाद महिला अलग धर्म के एक युवक के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी. इस दौरान उसे एक बच्चा भी हुआ. इस रिश्ते से महिला के पहले ससुराल वाले नाखुश हैं. वह धमकी दे रहे हैं. ऐसे में बच्ची की ओर से याचिका दाखिल कर सुरक्षा की मांग की गई है. कहा गया कि पुलिस उनकी प्राथमिकी दर्ज नहीं कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का किया जिक्र
खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि बिना विवाह के बालिग माता-पिता को साथ रहने का अधिकार है. अदालत ने संभल पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया कि यदि माता-पिता संबंधित पुलिस स्टेशन से संपर्क करते हैं तो प्राथमिकी दर्ज की जाए. कानून के अनुसार बच्चे और माता-पिता को आवश्यकतानुसार सुरक्षा दी जाए.

2018 से रह रहे साथ
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने कहा कि बच्ची की उम्र एक साल चार महीने की है. बच्ची के मां-बाप अलग-अलग धर्मों से हैं. वह साल 2018 से साथ रह रहे हैं. बच्ची की मां के पहले के सास-ससुर से उसके मां-बाप को खतरे की आशंका है. कोर्ट ने 8 अप्रैल के अपने निर्णय में कहा कि संविधान के तहत वे मां-बाप जो वयस्क हैं, साथ रहने के हकदार हैं. भले ही उन्होंने विवाह नहीं किया हो.